भगता

जलियनवाला बाग हत्याकांड के बाद भगतसींह की जिंदगी पूरी तरह से बदल गई...चारों तरफ लाशों के ढेर... खुन से लाल हुई जमीन को भगत सिंह ने देखा और क्रांतिकारी होने का फैसला कर लिया... 

भगत सिंह के प्रेरणा थे कर्तार सिंह सराभा... कर्तार सिंह सराभा को अंग्रेजो ने फांसी दे दी थी तब उनकी उम्र सिर्फ 17 साल थी...  

भगत सिंह को पढ़ने का बहुत शौक था, जिस उम्र में जवान बच्चे प्यार के सपनों मे खोए रहते है, जिस उम्र में जवाश बच्चों को प्यार के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता उसी उम्र में भगत सिंह कहते है कि, "अब, आजादी ही मेरी दुल्हन है"

भगत सिंह कम उम्र के क्रांतिकारी तो थे ही पर वो उसी उम्र में एक विचारवंत भी थे... उनके विचार बहुत ही प्रगल्भ थे... 

भगत सिंह के पास हमेशा एक किताब और एक बंदूक होती थी 
ये नौजवान क्रांतिकारी की कलम भी काफी तेज थी, उनके विचारों ने युवकों के मन में आग लगा दी
और अंग्रेजो के मन में डर... 

"मैं इश्क़ भी लिखना चाहु तो इंनक्लाब लिखा जा रहा है"
मतलब वो अपने उद्देश्य के प्रति कितने सजग और एकनिष्ठ थे ये इस बात से स्पष्ट होता है...  

जब भगत सिंह का क्रांतिकारी दौर चरम पर था तब सभी पेपर में और जनता में एक ही चर्चा थी, 

"की भगत सिंह महात्मा गांधी से भी बडा नेता बन सकता है"

मतलब इस रफ्तार से भगत सिंह ने अपना क्रांतिकारीत्व प्रकट किया और उसे सारे देश में फैला दिया  

भगत सिंह ने जब असैंबली में बम फेंका तो उस दिन बम से किसी भी व्यक्ति को मारना उनका उद्देश्य नहीं था, 

बम भी खाली जगह देखकर ही फेंका गया था... औल बम सिर्फ आवाज और धुए का था... 

बम फेंकने के बाद वो वहां से भागे नहीं बल्कि उन्होने खूद से ही पोलीस को पकड़ने का मौका दिया, 

इस काम में उन के साथ बटुकेश्वर दत्त थे  

भगत सिंह खुद को नास्तिक मानते थे 

भगत सिंह को फांसी से बचाने के लिए अनेक लोगों ने प्रयास किए उसमें महात्मा गांधी जी ही शामिल थे, 

पर भगत सिंह का मानना था कि, मै इस फांसी से बच कर भाग गया तो इस देश की माँ ये अपने बच्चों को देश के लिए कुर्बानी होने के लिए नहीं छोडेंगी 

मेरे मरने के बाद इस देश पर मरने वालों का सैलाब आएगा 
 
फांसी के दिन वो काॅम्रेड लेनीन की किताब पढ रहे थे... 

जब जेलर उनको फांसी के लिए लेने को आया तब वो कहते है कि, 

"जरा रूको एक क्रांतिकारी दुसरे क्रांतिकारी से मिलने वाला है"

ऐसे महान क्रांतिकारी शहीद ए आजम भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू जी को मेला शत शत नमन 
        *-Budhisar (BS)*

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