cast based India
*"Cast based India"*
भारत की सामाजिक रचना जाती पर आधारित है ये बात तो हम सब जानते है... पर "जाती" ये केवल शब्द के स्वरूप में काम नहीं करती... "जाती" की एक व्यवस्था है और उस व्यवस्था के आधार पर बनाए गए नियमों पर यहाँ कहा सामाजिक क्षेत्र काम करता है. केवल उल्लेख (मै इस जाती से हूँ) करने के लिए जाती का प्रयोग यहाँ नही होता...ये कोई ठोस वस्तु नहीं हैं ,जो नदी में हम फेंक आए और वो नष्ट हो...
स्वतंत्रपुर्व भारत में मनुस्मृती का कानून था...व्यक्तिगत तौर पर कोई भी चीज के Apply के लिए या उस व्यवस्था की Terms and Conditions को Implement करने के लिए *नियमों के कानून* की जरूरत होती है... तो इस जाती से संबंधित कानून के मुताबिक भारतीय समाज का विभाजन किया गया... समाज के लोगों का उनके कामों के हिसाब से विभाजन किया गया... पहराव का विभाजन किया गया... Life style (रहन सहन) का विभाजन किया गया... रहने के इलको का विभाजन किया गया...
शिक्षा और संपत्ती का विभाजन किया गया... Cast तो यहाँ विभाजन का विषय था ही पर, मनुस्मृती नाम के जुलमी कानुन ने जातीव्यवस्था में Class को भी शामिल कर दिया... शिक्षा और संपत्ति की Monopoly एक विशिष्ट समाज के पास ही थी...जिस ने ये कानून बनाया था.
हमारे जिवन जिने की पध्दति में Rules and Regulations का अप्रत्यक्ष प्रभाव रहता है... और उस के अनुसार ही हमारा जिवन चलता है... तो जाहिर सी बात है कि समाज को देखने का और उस समाज में जिने का Mindset बनता जाता है... कानून समाज को बनाने का काम करते हैं. कानून समाज के हित को लक्ष में रख कर लिखे गए हो तो समाज में बदलाव दिख सकता है.
पगडी पहनना, दाढी रखना, मुछ रखना, घूंघट, चुंडीया, हिंदू धर्म का पोशाक अलग, मुस्लिम धर्म का पोशाक अलग... विविध धर्म के अनुसार खानपान के अलग नियम है, रहन सहन के अलग नियम है...धर्मो के अनुसार यहाँ अलग अलग संस्कृति है, अलग अलग उत्सव मनाए जाते हैं...
इन सब विभजन का एक नाम है *"जात"* वो अदृश्य जरूर है पर वो हमारे जिवन जिने का एक अविभाज्य घटक बन चुकी है... क्योंकि धर्म का कायदा ऐसा बना है...अगर इस व्यवस्था को हमे तोड़ना होगा तो उसे हमे Flexible बनाना पड़ेगा... संस्कृति का एक दूसरे के साथ Mix-up होना ही एक मात्र उपाय है... इसलिए Inter Caste Marriage बड़े पैमाने पर होने चाहिए.
लोगों लोगों में भेद करना... संपत्ति, जमीन और शिक्षा पर एक ही जाती का अधिकार रखना...स्त्री को उपभोग की वस्तू बताना... स्त्रीयों पर बंधन रखना, उसको शिक्षा से वंचित रखना... ऐसे अनेक अन्ययकारक नियम मनुस्मृती के कानून में थे...
पर, बाबासहेब आंबेडकर लिखीत संविधान ने ये सभी बंदी को हटा कर इस देश के व्यक्ति को केंद्र में रखकर जो संविधान लिखा उस में...हर एक को उन्नति और खुद का विकास करने का समान अवसर दिया गया है... महिलाओं को समान शिक्षा की संधी दि गई, संपत्ति में अधिकार
महिलाओं को दिया गया...और एसी अनेक अच्छी बातें जो समाज को सशक्त बनाए वो बाबासाहेब जी ने संविधान के जरिए सामाजिक कानून बनाकर हमें दी...!!
अप्रत्यक्ष रूस से आज भी जो जातीव्यवस्था कार्यरत है उस से हमे आज भी लड़ना होगा... मनुस्मृती को संविधान लेकर हमें हराना होगा...!!
*-Budhisar Shikare*
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